क्या आप मे से किसी के साथ ऐसा हुआ है 👇🏻
1. मैं चौथी में था। एक बच्चे से मेरा झगड़ा हुआ। वो मुझे मारकर भगवान के चबूतरे पर चढ़ गया। उस चबूतरे पर चढ़ना तो दूर उसे छूना तक मुझ जैसो के लिये मना था। अंदर बहुत घुस्सा था। मैंने भी एक पत्थर उठाया और मार दिया उसको। उसका सर फुट गया। उसका सर फोड़ना मेरा उद्देश्य नही रहा होगा। पर शायद मैंने यह सोचा होगा कि मैं न सही मेरा पत्थर तो वहाँ पहुँच सकता है। खैर… बात बढ़ गई और मेरे दादाजी तक पहुंची। उन्होंने मेरा पुरा साथ दिया। आज वो लड़का गांव में एक किराने की दुकान चला रहा है।
2. उस समय मैं छठी में था। दोस्तो के साथ गांव में खेल रहा था। खेलते खेलते प्यास लगी। एक दोस्त ने कहा मेरे घर चल। उसके घर जाने के बाद उसके माँ ने मुझे बाहर ही रुकने को कहा। अंदर से लौटे में पानी लेकर आई और मुझे कहाँ की हाथ की ओजल बनाओ। मैं उसमे पानी डालूंगी। मैंने इस तरह पानी पीने से इंकार किया। वो दोस्त आज क्या कर रहा है पता नही।
3. तब मैं सातवी में था। गांव में पानी भरने के लिये एक ही हैंडपम्प था। लंबी लाइन लगती थी। मैं भी अपनी गागर लिए लाइन में खड़ा था। अचानक यू हुआ कि मेरी गागर सामने वाले के गागर से छू गई। फिर क्या था? उसने मुझे कसकर तमाचा मारा और बहुत कुछ सुनाया मेरी जाती को लेकर। मैं तिलमिलाकर रह गया। वो उमर और शरीर से बड़ा जो था। आज जब गांव में जाता हूं तो वो कभी कभार दिखता है। दयनीय हालत में। लगता है कि इससे वो बदला लू। पर फिर लगता है कि इसमें और मुझमे क्या अंतर रह जायेगा।
खैर… ये कुछ प्रसंग मैंने इसलिए बताये क्योंकि मैं अभी *एक महानायक डॉ बी आर अंबेडकर* देख रहा हु। मेरी भी वो जख्म ताजे हो गये।
उस समय तो बाबासाहब को नही जानता था। पर पता नही कैसे शिक्षा का महत्व जानने लगा था। दो कक्षाओं को छोड़ दसवीं तक हर कक्षाओं में पहला आया। इस दौरान मेरी चार जगहों पर पढ़ाई हुई।
पर इस जातीय अपमान को मैंने कभी दिल से नही लगाया। न किसी से बदला लेने की कोशिश की। माना कि मैं स्वभाव से तीखा हु पर कभी भी बिना मतलब किसी को नीचा नही दिखाया या उनसे लढ़ा नही।
मैंने शुरुआत में पूछा है कि क्या ऐसा किसी के साथ हुआ है? पर मेरे साथ हुआ है। फिर भी मेरा विश्वास सब पर है। मैं जब भी कोई बात करता हु सोच समझकर करता हु। कमियों को दूर करना उद्देश्य होता है किसी को नीचा या ऊंचा दिखाना नही।
डॉ संजय कुमार पंडागले