13.09.2020
दोपहर करीब 4 बजे मेरी आँख लगी ही थी कि बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज आई। कुछ लोग हट हट कर रहे थे। मैं हाथों में डंडा लिये बाहर निकला। पता चला कि बंदर के बच्चे को कुत्तो ने लहूलुहान कर दिया है और उसे नोंच रहे है। तुरंत उस जगह पहुंच कर सबको भगाया। पास जाकर देखने पर पता चला कि उस बच्चे की हालत बेहद नाजुक थी। उसे पहले से ही एक बड़ा घाव था और वो बीमार भी नजर आ रहा था। ऊपर से कुत्तो का हमला। वो हिलने के हालत में भी नही था। खैर…
मैं, डॉ त्रिपाठी और मेरा बेटा, हम तीनों वही उसकी पहरेदारी करते हुये सोच रहे थे कि क्या किया जाये? मैंने उसे पानी दिया। थोड़ी देर बाद वो पानी पीने लगा। उसे और चाहिए था तो और दिया। करीब 5 बार उसने पानी पिया। थोड़ी जान आई। कुछ दूर सरका। फिर उसे कुछ खिलाने का सोचा। त्रिपाठी जी ने एप्पल लाया। धीरे धीरे उसने करीब आधा एप्पल खाया।
पर सबसे बड़ा सवाल था कि इसे बचाया कैसे जाये? कई जगह फ़ोन लगाये। पर फायदा नही हुआ।
हम ये सोच रहे थे किसी तरह ये पेड़ पर चढ़ जाये तो कुत्तो से सुरक्षित होगा और हो सकता है कि इसके रिश्तेदारों में से कोई उसे वहाँ से ले जाये। तो मैंने एक पुराना जालीदार गेट पेड़ से सटाया जिसकी मदत से वो ऊपर चढ़ सके। पर कोई फायदा नही हुआ। करीब एक घंटा हम तीनों यही सब करते रहे। आखिर में गार्ड्स को बुलाया और कहा कि इसे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दो। उतने में बरुआ जी की एंट्री हुई। फारेस्ट डिपार्टमेंट में उनका कोई पहचान वाला था। आखिर में वो लोग आये और उस बच्चे को लेकर गए।
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